Construction Engineering-सिविल इंजीनियर kya hoti hai

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सिविल इंजीनियर

एक सिविल इंजीनियर वह व्यक्ति होता है जो सिविल इंजीनियरिंग का अभ्यास करता है – सार्वजनिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए बुनियादी ढांचे की योजना, डिजाइन, निर्माण, रखरखाव और संचालन के साथ-साथ मौजूदा बुनियादी ढांचे में सुधार करना जो कि उपेक्षित हो सकता है
एक सिविल इंजीनियर वह व्यक्ति होता है जो सिविल इंजीनियरिंग का अभ्यास करता है – सार्वजनिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए बुनियादी ढांचे की योजना, डिजाइन, निर्माण, रखरखाव और संचालन के साथ-साथ मौजूदा बुनियादी ढांचे में सुधार करना जो कि उपेक्षित हो सकता है।

सिविल इंजीनियर में कौन कौन से कोर्स होते हैं

सिविल इंजीनियरिंग 3 साल का डिप्लोमा कोर्स है जिसमें छात्रों को बिल्डिंग की नई भौतिक और प्राकृतिक चीजों की योजना, डिजाइनिंग, निर्माण और कई अन्य पहलुओं के बारे में ज्ञान मिलता है। सिविल इंजीनियरिंग डिप्लोमा कार्यक्रम में पढ़ाए जाने वाले विषय अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेजों में लगभग समान हैं

Construction Engineering – अगर आप किसी शहर में रहते हैं तो जरा अपने आसपास नजर दौड़ाकर देखिए आपको ढेर सारे कंस्ट्रक्शन साइट्स दिख जाएंगे रोड्स फ्लाई ओवर्स ब्रिजे हॉस्पिटल्स मॉल्स रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स टनल्स डम्स या ऐसे ही ढेर सारे कंस्ट्रक्शंस कहीं ना कहीं चल ही रहे होते हैं तो इन सभी कामों को पूरा करने की जिम्मेदारी कंस्ट्रक्शन इंजीनियर्स पर होती है और आज का वीडियो कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग पर आपकी नॉलेज को बढ़ाएगा शुरुआत कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग की डेफिनेशन से करते कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग एक प्रोसेस है जिसमें लार्ज स्केल और कॉम्प्लेक्शन

प्रोजेक्ट्स को मैनेज किया जाता है इसमें हर तरह के कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स को डिजाइन डेवलप और सुपरवाइज करना होता है कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग लगभग सिविल इंजीनियरिंग के जैसा ही है पर इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के साथ-साथ इसके मैनेजमेंट पर भी ज्यादा फोकस किया जाता है इसमें यह भी इंश्योर किया जाता है कि प्रोजेक्ट सेफ वेल मेड और डिपेंडेबल होने के साथ-साथ डेडलाइन पर भी पूरा हो इसके अलावा कंस्ट्रक्शन इंजीनियर्स को इलेक्ट्रिकल सिस्टम्स मैकेनिकल सिस्टम्स और हेवी इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स पर भी काम करना होता है कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग प्रोफेशनल्स की ड्यूटी एंड जिम्मेदारियों को करीब से समझेंगे तो इस फील्ड के बारे में आपको ज्यादा क्लेरिटी मिलेगी तो इस फील्ड के एक्सपर्ट्स को इंस्पेक्शंस टेस्टिंग मटेरियल इक्विपमेंट और लेबर कॉस्ट को कैलकुलेट करते हुए असाइन प्रोजेक्ट का बजट तैयार करना होता है बजट बन जाने के बाद फंड्स को एफिशिएंटली मैनेज करना होता है ताकि कम बजट में काम पूरा हो सके ऑन गोइंग प्रोजेक्ट्स का डिजाइन और 3डी मॉडल्स बनाने के लिए इन्हें कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और स्टिमुलेशन टूल्स का यूज करना पड़ता है प्रोजेक्ट के रिस्क एनालिसिस को भी परफॉर्म करना पड़ता है और कहां कंस्ट्रक्शन किया जा सकता है इसके लिए साइट्स का मुआयना करना पड़ता है और लेआउटस भी बनाना पड़ता है प्रोजेक्ट्स के लिए कांट्रैक्टर से बोली लगवाना और हायर किए गए कांट्रैक्टिंग फर्म्स को मैनेज करना पड़ता है प्रोजेक्ट के लिए सभी तरह के मटेरियल और इक्विपमेंट को अरेंज करना भी इन्हीं की जिम्मेदारी में शामिल है प्रोजेक्ट के लिए जरूरी मैनपावर और लेबर्स को हायर करने से लेकर के उन्हें मैनेज भी करना होता है ताकि काम स्केड्यूल पर पूरा हो सके हर तरह के कंस्ट्रक्शन साइट्स पर एनवायरमेंटल लॉज गवर्नमेंट रेगुलेशंस और कंस्ट्रक्शन कोड्स फॉलो हो इसे इंश्योर भी करना पड़ता है प्रोजेक्ट साइट पर जरूरत वाले सभी टेंपरेरी स्ट्रक्चर्स भी इन्हें खड़ा करवाना पड़ता है अपनी प्रॉब्लम सॉल्विंग एबिलिटीज के साथ साइट्स पर आई दिक्कतों का हल भी निकालना होता है और अगर साइट पर कोई अनफॉर्चूनेटली कंपनी के बिहाव से टैकल भी करना पड़ता है और अपनी फील्ड से जुड़ी लेटेस्ट टेक्नोलॉजी ट्रेंड्स बिल्डिंग लॉज कंस्ट्रक्शन प्रोसेसेस और गवर्नमेंट रूल्स एंड रेगुलेशन से भी खुद को अप टू डेट रखना पड़ता है रही बात कंस्ट्रक्शन इंजीनियर बनने की योग्यता की तो इंडिया में इंजीनियरिंग करने के लिए किसी भी कैंडिडेट
का साइंस स्ट्रीम से विद फिजिक्स केमिस्ट्री एंड मैथ्स क्लास 12थ पास होना जरूरी है इसके बाद इंजीनियरिंग एस्परेंस स्टूडेंट्स में से ज्यादातर जेईई की तैयारी करते हैं जेईई मेन क्वालिफाई करने वाले स्टूडेंट्स को जेईई एडवांस देना होता है और एग्जाम में आए ऑल इंडिया रैंक के अकॉर्डिंग उन्हें आईआईटी या दूसरे प्रेस्टीजियस इंजीनियरिंग कॉलेजेस में एडमिशन मिलता है वैसे हमारी लाइब्रेरी में आपको आईआईटी जेईई की तैयारी पर एक सेपरेट वीडियो मिल जाएगा इसे जरूर से चेक कीजिएगा आईआईटी बॉम्बे आईआईटी दिल्ली जादवपुर यूनिवर्सिटी मणिपाल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी क्राइस्ट यूनिवर्सिटी बैंगलोर एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज जोधपुर हिंदुस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस चेन्नई जैसे इंस्टीट्यूशन से आप कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर सकते हैं और जैसा कि हम हमेशा कहते हैं कि यह तो हमारी और से कुछ सजेस्टेड कॉलेजेस के नाम है पर आप अपने लेवल पर भी रिसर्च जरूर से कर लीजिएगा वैसे अब सिलेबस के तौर पर इंजीनियरिंग की इस विंग में पढ़ाया क्या जाता है उसकी बात कर लेते हैं तो बेसिक्स ऑफ इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद जब कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग पर फोकस किया जाता है तो इंजीनियरिंग ग्राफिक्स और कंप्यूटर एडेड डिजाइन यानी कि सीडी के जरिए स्टूडेंट्स को मैकेनिक डिजाइनिंग टेक्निकल ड्राइंग स्किल्स कंप्यूटर ग्राफिक्स और फ्री हैंड स्केचिंग सिखाई जाती है वहीं इंजीनियरिंग फिजिक्स में फंडामेंटल प्रिंसिपल्स ऑफ फिजिक्स जैसे इलास्टिसिटी क्वांटम फिजिक्स अकूस्टिक फाइबर ऑप्टिक्स मैग्नेटिज्म और इंजीनियरिंग में इनका एप्लीकेशन सिखाया जाता है स्टूडेंट्स को सस्टेनेबल इंजीनियरिंग सिस्टम्स के जरिए प्रिंसिपल्स ऑफ सस्टेनेबल टेक्नोलॉजीज मेथड्स ऑफ रीयूज और रीडिप ब्यूट वेस्ट और मैनेजमेंट स्किल सिखाई जाती हैं एनालिटिकल मैथमेटिक्स भी सिलेबस में इ इंक्लूडेड रहता है जिससे स्टूडेंट्स इंटीग्रल्स लेप्लास ट्रांसफॉर्म्स फय सीरीज एप्लीकेशन ऑफ कॉम्प्लेक्शन लैंग्वेज से इनके एप्लीकेशन सीखते हैं इंजीनियरिंग मटेरियल में अपनी समझ को बढ़ाने के लिए स्टूडेंट्स को क्रिस्टल स्ट्रक्चर नैनो मटेरियल पाउडर मेटालर्जी पॉलीमर्स लिक्विड क्रिस्टल्स लुब्रिकेंट्स एडिसिक्स और एक्सप्लोसिव हैंडलिंग में भी एक्सपर्टीज हासिल करनी पड़ती है ताकि कंस्ट्रक्शन के दौरान इनका यूज किया जा सके कंस्ट्रक्शन मटेरियल स्टील कंक्रीट स्पेशल कंक्रीट पॉलीमर बेस्ड मटेरियल का यूज एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग में डिजाइनिंग एंड हैंडलिंग ऑफ वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांस सेफ डिस्पोजल ऑफ इफेक्टेड सीवेज और वाटर डिस्ट्रीब्यूशन मेथड्स को सीखना होता है कंस्ट्रक्शन टेक्निक्स में सुपर एंड सब स्ट्रक्चर कंस्ट्रक्शन और इनके टाइप्स ऑफ इक्विपमेंट का इस्तेमाल जियोटेक्निकल इंजीनियरिंग में स्ट्रेस डिस्ट्रीब्यूशन और स्ट्रेंथ ऑफ सॉइल ट्रांसपोर्टेशन इंजीनियरिंग में हाईवे कंस्ट्रक्शन इसमें यूज होने वाले मटेरियल और ट्रैफिक मैनेजमेंट हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग में प्रिंसिपल्स ऑफ पंप्स और टर्बाइंस बन रहे स्ट्रक्चर के मुताबिक इनके सिलेक्शन के साथ-साथ मैकेनिक्स ऑफ फ्लूइड और स्ट्रक्चरल एनालिसिस के प्रिंसिपल्स भी सीखने होते हैं कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद सक्सेसफुल कैंडिडेट्स को जिन जॉब प्रोफाइल्स पर हायर किया जाता है वह है कंस्ट्रक्शन इंजीनियर इनके रोल्स एंड रिस्पांसिबिलिटीज को हम वीडियो की शुरुआत में ऑलरेडी समझा चुके हैं एक लाइन में समझे तो एक कंस्ट्रक्शन इंजीनियर को प्रोजेक्ट मैनेजर का काम करना पड़ता है और स्मॉल लेवल प्रोजेक्ट्स के लिए इन्हें सिंपली एक कांट्रैक्टर का रोल भी प्ले करना होता है प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर एक कंस्ट्रक्शन इंजीनियर का काम तो बाद में शुरू होता है उससे भी पहले कंस्ट्रक्शन एस्टिमेटर को आना पड़ता है जो कंस्ट्रक्शन प्रॉजेक्ट के कॉस्ट का अंदाजा लगाता है अब यह सुनने में बड़ा आसान लगता है पर यह एक टाइम टेकिंग प्रोसेस है जहां प्रोजेक्ट साइट प्रोजेक्ट का साइज यूज होने वाले मटेरियल डेडलाइन कंस्ट्रक्शन का डिजाइन इंजीनियरिंग आर्किटेक्चर आदि को समझते हुए बजट को बनाना पड़ता है इसमें काफी मैथमेटिकल और स्ट्रेटेजिक कैलकुलेशंस की जरूरत पड़ती है साइट इंजीनियर यह तो आपने ही सुना होगा कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग में इन प्रोफेशनल्स को ऑन साइट और फील्ड्स जैसे कि फैक्ट्रीज में काम करना होता है इनकी जिम्मेदारियों में यूज हो रहे इक्विपमेंट टेक्नोलॉजी और टूल्स का इंस्पेक्शन इंस्टॉलेशन साइट पर काम कर रहे लोगों को इंस्ट्रक्शन देना साइट पे जा जाकर काम का मुआयना करना और स्टेटस चेक करके रिपोर्टिंग करना जैसे काम शामिल होते हैं यही नहीं अगर साइट पर कोई प्रॉब्लम आ गई तो उन्हें सॉल्व करना सॉफ्टवेयर हार्डवेयर या दूसरे सिस्टम रिलेटेड मेंटेनेंस करवाना भी इनके हवाले होता है स्ट्रक्चर इंजीनियर जैसा कि नाम बता रहा है इन्हें बन रहे प्रोजेक्ट की ड्राइंग और स्पेसिफिकेशंस देने होते हैं कैलकुलेशंस और रिव्यू वर्क परफॉर्म करने होते हैं दूसरे कंस्ट्रक्शन इंजीनियर्स के काम का स्टेटस लेना पड़ता है और ऑब्जर्वेशनल रिपोर्ट्स भी तैयार करने पड़ते हैं यह एक्चुअली लाइसेंस्ड प्रोफेशनल्स भी होते हैं जो साइट पर जरूरत पड़ने वाले मटेरियल से लेकर के मैन पावर तक जरूरत का हर काम देखते हैं हर कंस्ट्रक्शन वर्क के चलते हमारे आसपास के वातावरण को कुछ ना कुछ नुकसान पहुंचता ही है और इसलिए कंस्ट्रक्शन साइट्स पे एक एनवायरमेंटल इंजीनियर की मदद ली जाती है पर्यावरण पर कम से कम असर पड़े और सरकार के बनाए गए एनवायरमेंटल लॉज के मुताबिक काम आगे बढ़े इसके लिए इन्हें प्रिंसिपल्स ऑफ इंजीनियरिंग सोइल साइंस बायोलॉजी और केमिस्ट्री में हासिल अपनी एक्सपर्टीज को यूज करना होता है ताकि ए मेंटल प्रॉब्लम्स को सॉल्व किया जा सके इसलिए इन्हें ये इंस्पेक्शन करना पड़ता है कि प्रोजेक्ट का डिजाइन यूज होने वाली टेक्नोलॉजी और बाकी सभी एस्पेक्ट्स जैसे पोल्यूशन कंट्रोल और क्लीनअप कंटेम पर खरे उतरे इसके लिए इन्हें सिविल इंजीनियरिंग एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग मरीन इंजीनियरिंग मैकेनिकल इंजीनियरिंग केमिकल इंजीनियरिंग और प्रोसेस इंजीनियरिंग की समझ रखनी पड़ती है अब बात करें सैलरी की तो इंडिया में कंस्ट्रक्शन इंजीनियर्स को एवरेज बेस पे के तौर पर 20 से 242000 मिलते हैं है वहीं एवरेज एनुअल पैकेज होता है लगभग 65 लाख पर बढ़ते एक्सपीरियंस क्वालीफिकेशंस प्रोजेक्ट हैंडलिंग स्किल्स और जॉब स्विच के साथ सैलरी रेंज ₹1 लाख तक जा सकती है और यह हम नहीं कह रहे हैं यह ग्लास स्टोर की वेबसाइट पर मेंशन है दरअसल ग्लासडोर एक अमेरिकन वेबसाइट है जहां पर करंट और फॉर्मर एंप्लॉयज अलग-अलग कंपनीज और जॉब प्रोफाइल्स के बारे में रिव्यूज देते हैं इंडिया में टॉप की वह कंपनीज जो कंस्ट्रक्शन इंजीनियर्स को हायर करती हैं वह है कंसोलिडेट टेड कंस्ट्रक्शन कंसोर्सियम लिमिटेड बीजीआर एनर्जी सिस्टम्स लिमिटेड एलएनटी इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन डिवीजन टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी जय कुमार इंफ्रा अशोका बिल्ड कन जेपी ग्रुप वगैरह वगैरह इनके अलावा टाटा कंसल्टेंसी सर्विस विपो आईबीएम फोस एचसीएल टेक एक्सेंचर और कॉग्निजेंट जैसी आईटी जॉइंट कंपनीज भी कंस्ट्रक्शन इंजीनियर्स की हायरिंग करती हैं यही नहीं इंडियन कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग प्रोफेशनल्स मिडिल ईस्ट के देशों में अफ्रीकन नेशंस में नेपाल सिंगापुर कैनेडा मलेशिया इंडोनेशिया सहित दुनिया भर के देशों में पावर प्लांट प्रोजेक्ट्स ऑयल एंड गैस फील्ड्स ऑयल पाइपलाइन सिविल कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स रियल स्टेट जैसे ढेर सारे सेक्टर्स में काम करते हैं लेकिन बहुत बार ऐसा होता है कि कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग को ही सिविल इंजीनियरिंग ही समझ लिया जाता है लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि इन दोनों में जो प्राइमरी डिफरेंस है वह है सिविल इंजीनियर्स कंसंट्रेट करते हैं इंफ्रास्ट्रक्चर डिजाइन में वहीं कंस्ट्रक्शन इंजीनियर्स स्पेशलाइज्ड हो हैं सिविल इंजीनियर्स के डिजाइन को ऑन साइट इंप्लीमेंट करने में कंस्ट्रक्शन इंजीनियर्स को कॉलेबनेट करना पड़ता है आर्किटेक्ट्स और इंजीनियरिंग प्रोफेशनल्स के साथ ताकि दिए गए डिजाइन को बनाया जा सके और इस काम में आए प्रॉब्लम्स को सॉल्व किया जा सके कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग में ज्यादातर डे टू डे कंस्ट्रक्शन साइट मैनेजमेंट को देखना होता है ज्यादातर कंस्ट्रक्शन इंजीनियर्स को उन्हीं प्रोजेक्ट्स में इवॉल्व रहना पड़ता है जिसे एक सिविल इंजीनियर लीड कर रहा होता है आसान भाषा में कहे तो अगर सिविल इंजीनियरिंग मार्क है तो कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग उसके हाथ और पैर है अब यह आप कैसे तय करेंगे कि आपको सिविल इंजीनियरिंग में जाना चाहिए या कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग में तो इन दोनों के बीच की चॉइस डिपेंड करती है आपके पर्सनल इंटरेस्ट गोल्स और प्रेफरेंसेस पर अगर आप इंटरेस्टेड है थोरेट्स पचुनी में अगर आप डिजाइनिंग एनालिसिस स्ट्रक्चर्स और सिस्टम को इंप्रूव करने में यकीन रखते हैं तो आपको सिविल इंजीनियरिंग में जाना चाहिए वहीं अगर आप प्रैक्टिकल और ऑपरेशनल एस्पेक्ट्स ऑफ ंग में इंटरेस्टेड हैं और प्लानिंग कोऑर्डिनेशन कंस्ट्रक्शन प्रोसेस को मैनेज करने में कॉन्फिडेंट है तो कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग को चूज कर सकते हैं लेकिन दोनों के लिए ही मैथमेटिक्स साइंस और इंजीनियरिंग प्रिंसिपल्स में स्ट्रांग फाउंडेशन होनी चाहिए इसके अलावा अच्छी कम्युनिकेशन स्किल्स टीम वर्क आय ऑन डिटेल्स और प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स जैसी काबिलियत भी रखनी पड़ेगी उम्मीद है आज के इस वीडियो से कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग के बारे में आपकी जानकारी में काफी इजाफा हुआ होगा अगर

सिविल इंजीनियर की सैलरी कितनी होती है?

वेतन के मामले में, नए लोग प्रति माह 3 से 5 लाख रुपये के बीच कमाई की उम्मीद कर सकते हैं। 4 से 5 साल के अनुभव वाले सिविल इंजीनियर प्रति माह 70,000 से 90,000 के बीच कमाने की उम्मीद कर सकते हैं

इंजीनियरिंग का सबसे अच्छा ब्रांच कौन सा है?

इंजीनियरिंग 12वीं के बाद सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाले डिग्री कोर्स में से एक है। भविष्य के लिए बेस्ट इंजीनियरिंग कोर्सेज में सिविल, कंप्यूटर साइंस, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल आदि शामिल हैं।

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